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कविता

लोकतंत्र पर संकट-3

अनुकृति शर्मा


देखो संकट आया है
जनमन पर गहराया है
तरह-तरह के हैं हथियार
सबसे पहला है स्वीकार
मानो वह जो जायज हो
वह भी जो नाजायज हो
प्रश्न सभी बेमानी हैं
सीमा पर सेनानी हैं
कुछ तो उनका ध्यान करो
देशद्रोहियों, शर्म करो
सबसे ऊपर नेता हैं
वे चिर के ही चेता हैं
रोज नए इतिहास गढ़ें
और हवाई किले चढ़ें
झूठ सत्य का क्यों हो भय?
भारत माता की है जय!
बड़ा है नेता हर मद से
संविधान से, संसद से
आओ, सब निज स्वार्थ तकें
मूक भेड़ चुपचाप हँकें
जनमन की क्या पाएँ थाह
चुनते हम ही तानाशाह
आँख मूँदते पहले हम
पैर तले रुँदते फिर हम
यही हमें मनभाया है
देखो संकट आया है।
 


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